ईरान 27 अक्टूबर को अफगानिस्तान के मुद्दे पर होने वाले बहुपक्षीय सम्मेलन की मेजबानी करेगा

हाल ही में, ईरान ने घोषणा कि की वह 27 अक्टूबर को अफगानिस्तान के मुद्दे पर होने वाले बहुपक्षीय सम्मेलन की मेजबानी करेगा। इस बैठक में चीन और पाकिस्तान के अलावा ईरान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे क्षेत्रीय देशों को भी बैठक में आमंत्रित किया गया है।

मुख्य बिंदु

काबुल में मौजूदा व्यवस्था को मान्यता देने में जल्दबाजी न करने के भारतीय पक्ष के निर्णय के अनुरूप तालिबान को बैठक में आमंत्रित करने की कोई योजना नहीं है।

लेकिन इस बैठक में यह देखा जाना बाकी है कि क्या पाकिस्तान के एनएसए मोईद यूसुफ अफगानिस्तान पर एक बैठक में शामिल होने के लिए सहमत होंगे, जिसमें तालिबान मौजूद नहीं हैं। पाकिस्तानी पक्ष, और विशेष रूप से युसूफ, तालिबान की स्थापना को मान्यता देने के लिए विश्व समुदाय पर दबाव बना रहे हैं।

गौरतलब है कि भारत ने पिछले हफ्ते 20 अक्टूबर को रूस द्वारा आयोजित होने वाले मास्को प्रारूप संवाद के अगले दौर में अपनी भागीदारी की पुष्टि की। विदेश मंत्रालय के एक संयुक्त सचिव बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे, जिसमें तालिबान का एक वरिष्ठ प्रतिनिधिमंडल शामिल होगा। मास्को प्रारूप में चीन, पाकिस्तान और ईरान भी शामिल हैं।

मास्को प्रारूप बैठक से पहले “विस्तारित ट्रोइका” की बैठक होगी – जो 19 अक्टूबर को मास्को में रूस, अमेरिका, चीन और पाकिस्तान के विशेष दूतों को एक साथ लाती है।

तालिबान

पश्तो जुबान में छात्रों को तालिबान कहा जाता है। दरअसल, तालिबान का अस्तित्‍व 1990 के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ था। जब तत्‍कालीन सोवियत संघ की सेना अफगानिस्तान से अपनी वापसी कर रही थी।

तालिबान इस्लामिक कट्टपंथी राजनीतिक आंदोलन हैं। शुरुआत में अफगानिस्तान में तालिबान का स्वागत और समर्थन किया गया। यह माना गया कि तालिबान देश में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार और पटरी से उतर चुकी अर्थव्‍यवस्‍था को ठीक कर देंगे। तालिबान ने फिर धीरे-धीरे कड़े इस्लामिक नियम लागू किए और कट्टरता बढ़ती गई।

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